प्रयागराज महाकुंभ से चर्चा में आईं हर्षा रिछारिया ने 14 अप्रैल को वृंदावन से पदयात्रा शुरू की। 20 अप्रैल को संभल पहुंचने, फिर 21 अप्रैल को यात्रा के समापन का लक्ष्य रखा। हर्षा ने बताया था कि यह यात्रा वह सनातन के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए निकाल रही हैं। हालांकि, 17 अप्रैल को अलीगढ़ में प्रशासन ने उन्हें आगे जाने की अनुमति नहीं दी। हर्षा रिछारिया से पहले भी कई राजनीतिक शख्सियतें और पार्टियां भी पदयात्रा निकाल चुकी हैं। सवाल उठता है कि पदयात्रा से क्या हासिल होता है, कब-कब पद यात्राओं ने राज्य सहित देश में हलचल मचाई, भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए- सवाल 1 : हर्षा रिछारिया के पदयात्रा निकालने का पूरा मामला क्या है? जवाब : हर्षा रिछारिया प्रयागराज महाकुंभ से ही सनातन को लेकर मुखर रही हैं। इसको लेकर सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हैं। उन्होंने सनातन को बचाने के लिए अप्रैल महीने में पदयात्रा निकालने का ऐलान किया था। हर्षा पदयात्रा क्यों कर रही हैं? इसके जवाब में वो कहती हैं कि युवाओं को सनातन के प्रति जागरूक करना है। ईश्वर मेरे लिए बहुत अच्छा रास्ता बनाता जा रहा है। गांव वाले बहुत अच्छे हैं। बहुत अच्छा खाना बनाकर खिलाया। अलीशा खान पदयात्रा के पहले दिन बुर्का और हिजाब में टीका लगाकर पहुंचीं थीं। हम लोगों के लिए ये गर्व की बात है। दूसरे धर्मों से लोग भी सनातन से जुड़ रहे हैं। हम अपने धर्म का प्रचार कर रहे हैं। किसी की बुराई नहीं कर रहे। अपनी इच्छा से जो भी आना चाहे, उसका स्वागत है। हर्षा रिछारिया की यात्रा में आगे-आगे चलने के लिए जो रथ बनाया गया है उस पर दो संदेश लिखे गए हैं। पहला संदेश- आदरणीय बंधुओं, बाबा साहेब अंबेडकर जयंती पर वृंदावन से हिंदू जोड़ो पदयात्रा शुरू कर रहे हैं। इसका उद्देश्य सनातन धर्म से विमुक्त हो चुके युवक-युवतियों को वापस अपने धर्म में लाना है। दूसरा संदेश- चलो जोड़ें इतिहास के पन्ने में अपना नाम कि हम नौजवानों ने भी कदम बढ़ाया था, अपने भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने में, हमने भी अपना फर्ज निभाया था। सवाल 2 : हर्षा रिछारिया की पदयात्रा को अलीगढ़ में क्यों रोक दिया गया? जवाब : हर्षा रिछारिया ने ऐलान किया था वो वृंदावन से यात्रा शुरू कर संभल में अपनी यात्रा समाप्त करेंगी। हालांकि, अब हर्षा संभल नहीं जा पाएंगी। उनकी यात्रा को प्रशासन ने बुलंदशहर से आगे जाने की अनुमति नहीं दी है। नरौरा से स्नान कर वह वापस लौट जाएंगी। यात्रा के रोके जाने के बाद 17 अप्रैल को हर्षा रिछारिया ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें वह रो रही हैं। कैप्शन में उन्होंने लिखा- धर्म के रास्ते पर चलना इतना आसान नहीं होता। परीक्षा, त्याग, समर्पण के बिना कुछ प्राप्त नहीं होता। ये आंसू किसी तकलीफ के नहीं हैं बल्कि तीसरे दिन की पदयात्रा पूरी करने और हरिगढ़ (अलीगढ़) पहुंचने की खुशी के हैं। ADM सिटी ने इस यात्रा को रोकने के पीछे वजह बताई कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस ने ऐसा किया है। अलीगढ़ सीओ सिटी थर्ड अभय कुमार पांडेय के मुताबिक संभल के माहौल को देखते हुए उन्हें संभल न जाने को कहा गया था। वह नरौरा तक ही जाएंगी और गंगा स्नान कर लौट जाएंगी। ऐसा करने के पीछे बताया गया कि उनकी यात्रा आगे मुस्लिम बाहुल्य इलाकों से होकर गुजरनी थी। ऐसे में, विवाद की स्थिति हो सकती थी। इसी वजह से उन्हें आगे अनुमति नहीं दी गई। सवाल 3 : हर्षा रिछारिया कौन हैं? जवाब : जनवरी 2025 में शुरू हुए प्रयागराज महाकुंभ से पहले हर्षा रिछारिया की पहचान मात्र एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की थी। इंस्टाग्राम पर उनके लाखों फॉलोअर्स थे। फिर आया प्रयागराज महाकुंभ। 13 जनवरी को पहले अमृत स्नान के दौरान हर्षा रिछारिया निरंजनी अखाड़े की झांकी में रथ पर साधु-संतों के साथ बैठी नजर आईं। मीडिया ने उन्हें ‘सुंदर साध्वी’ का टैग दिया। एक मीडिया संस्थान को दी गई बाइट में उन्होंने कहा कि वह संन्यासी या तपस्वी नहीं हैं, बस अखाड़े से जुड़ी होने की वजह से बैठी हैं। हर्षा का यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इसके बाद इस बात पर विवाद खड़ा हो गया कि अगर वो साध्वी नहीं हैं तो साधु-संतों ने अपनी झांकी के रथ पर हर्षा को क्यों बैठाया? संतों ने इसे गलत बताया। तब निरंजनी अखाड़े ने सफाई देते हुए हर्षा रिछारिया से अपना पल्ला झाड़ लिया। इस पूरे विवाद में हर्षा रिछारिया खुद को सच्चा सनातनी और सनातन धर्म को आगे बढ़ाने की बात दोहराती रहीं। विवाद बढ़ने पर अंततः उन्हें महाकुंभ छोड़कर जाना पड़ा। सवाल 4 : धार्मिक पदयात्राएं क्यों की जाती हैं? जवाब : धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक किसी पवित्र स्थल तक पैदल पदयात्रा करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है। धार्मिक पदयात्रा करने से मानसिक शांति और भगवान का आशीर्वाद मिलता है। इन्हें अध्यात्म का सफर माना गया है। हिंदू धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि जो कोई भी भगवान शिव, श्री हरि विष्णु और देवी मां के धामों तक पदयात्रा करके पहुंचता है उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है। सवाल 5 : भारत में पदयात्राओं का इतिहास कितना पुराना है? जवाब : भारत में धार्मिक और राजनीतिक दोनों ही पदयात्राओं का पुराना इतिहास है। धार्मिक पदयात्राओं की बात करें तो इसका इतिहास उत्तर वैदिक काल तक जाता है। करीब छठी सदी ईसा पूर्व का यह वह समय था, जब लोग तीर्थ स्थानों तक पदयात्रा करते हुए जाते थे। बात राजनीतिक पदयात्राओं की करें तो आधुनिक भारत में महात्मा गांधी का उदाहरण दिया जाता है। महात्मा गांधी ने भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजादी की लड़ाई में पदयात्रा का सफल रूप से राजनीतिक इस्तेमाल किया था। भारत में एक तरह से राजनीति के संदर्भ में पदयात्रा का जन्म यहीं से माना जाता है। 1930 में जब ब्रिटिश हुकूमत ने भारत के लोगों पर नमक टैक्स लगा दिया, तब महात्मा गांधी ने गुजरात के साबरमती आश्रम से दांडी तक मार्च निकाला था। इस पदयात्रा में वो जहां-जहां से गुजरे लाखों भारतीय उनके साथ जुड़ते गए। फिर 1933 में महात्मा गांधी ने छुआछूत के खिलाफ एक और यात्रा निकाली थी। 1951 में आचार्य विनोबा भावे ने इस राजनीतिक तरीके का इस्तेमाल भूदान आंदोलन में किया था। सवाल 6 : भारत की प्रमुख राजनीतिक यात्राएं कौन-कौन सी रही हैं? जवाब : हाल के कुछ सालों में चर्चा के केंद्र में रही राजनीतिक यात्राओं की बात करें तो 2023 की राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ सबसे ऊपर आती है। आजादी के बाद की ऐसी ही कुछ यादगार राजनीतिक यात्राएं- 1983 में चंद्रशेखर की भारत यात्रा- युवा तुर्क के तौर पर पहचाने जाने वाले पूर्व PM चंद्रशेखर ने 1983 में पदयात्रा की थी। कन्याकुमारी से दिल्ली तक की गई इस यात्रा को चंद्रशेखर ने भारत यात्रा नाम दिया था। उनकी यह भारत यात्रा 4,000 किमी से अधिक की थी। 6 जनवरी 1983 को कन्याकुमारी के विवेकानंद स्मारक से शुरू हुई यह यात्रा 25 जून 1984 को दिल्ली के राजघाट पर खत्म हुई। चंद्रशेखर को इस यात्रा का तत्काल राजनीतिक फायदा तो नहीं मिला, लेकिन साल 1990 में वे देश के 8वें प्रधानमंत्री चुने गए। हालांकि मार्च 1991 में बहुमत की कमी के चलते चंद्रशेखर की सरकार गिर गई और उन्होंने PM पद से इस्तीफा दे दिया। 2003 की YSR की यात्रा- 9 अप्रैल 2003 को आंध्र प्रदेश के नेता वाई एस राजशेखर रेड्डी ने 2 महीने की पदयात्रा की शुरुआत की। अपनी 1,500 किमी की इस यात्रा के दौरान वाईएसआर ने 11 जिलों का दौरा किया और कई पब्लिक मीटिंग्स में हिस्सा लिया। यात्रा के दौरान वह लोगों से मिले और उनकी समस्याएं सुनीं। इस यात्रा का फायदा उन्हें 2004 के विधानसभा चुनाव में मिला। 2013 की चंद्रबाबू नायडू की यात्रा- वाई एस रेड्डी की पदयात्रा की वजह से चंद्रबाबू नायडू ने 2004 में CM की कुर्सी गंवाई थी। तेलुगु देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू ने 2013 में 1,700 किमी लंबी पदयात्रा की। नायडू ने साल 2014 में विधानसभा चुनाव लड़ा और राज्य के मुख्यमंत्री चुने गए। चंद्रबाबू ने 1989 में भी पदयात्रा की थी। 2017 की दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा- कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सितंबर 2017 में 6 महीने की नर्मदा यात्रा की शुरुआत की। दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कुल 230 विधानसभा सीटों में से 114 सीटों पर जीत मिली थी। हालांकि दोनों ही पार्टियां बहुमत के आंकड़े से 116 से दूर थीं। भाजपा को 109 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। बाद में कांग्रेस ने बसपा और सपा से गठबंधन कर सरकार बनाई थी। 2022 की प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा- 2 अक्टूबर 2022 को जन सुराज के मुखिया प्रशांत किशोर ने पदयात्रा की शुरुआत की थी। इस पदयात्रा की शुरुआत उन्होंने पश्चिम चंपारण जिले के ऐतिहासिक भितिहारवा गांव में उस गांधी आश्रम से की, जहां से महात्मा गांधी ने साल 1917 में अपना पहला सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था। पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री ने भी निकाली थी पदयात्रा: बाबा बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री ने भी नवंबर 2024 में पदयात्रा निकाली थी। पदयात्रा को नाम दिया सनातन हिंदू एकता यात्रा। ये पदयात्रा 21 नवंबर से 29 नवंबर तक बागेश्वर धाम से ओरछा धाम तक चली। यात्रा का मुख्य उद्देश्य हिंदू धर्म की एकता को मजबूत करना और सनातन धर्म का प्रचार करना था। ——————- ये भी पढ़ें: क्या सांप बदला लेता है:मेरठ में युवक को 10 बार काटकर बेड पर पड़ा रहा; यूपी में 5 साल में 3 हजार से ज्यादा मौतें मेरठ में एक युवक को सांप ने 10 बार डसा, जिससे उसकी मौत हो गई। सांप युवक को डसने के बाद वहां से हटा नहीं, उसकी डेडबॉडी के पास दुबककर बैठा रहा। सुबह उठने पर घरवालों ने जब यह देखा, तो शोर मचाने लगे। सपेरे को बुलाकर सांप को हटवाया और युवक को अस्पताल लेकर भागे। वहां डॉक्टरों ने युवक को मृत घोषित कर दिया। इसे लेकर क्षेत्र में तरह-तरह की चर्चाएं हैं। (पढ़ें पूरी खबर) प्रयागराज महाकुंभ से चर्चा में आईं हर्षा रिछारिया ने 14 अप्रैल को वृंदावन से पदयात्रा शुरू की। 20 अप्रैल को संभल पहुंचने, फिर 21 अप्रैल को यात्रा के समापन का लक्ष्य रखा। हर्षा ने बताया था कि यह यात्रा वह सनातन के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए निकाल रही हैं। हालांकि, 17 अप्रैल को अलीगढ़ में प्रशासन ने उन्हें आगे जाने की अनुमति नहीं दी। हर्षा रिछारिया से पहले भी कई राजनीतिक शख्सियतें और पार्टियां भी पदयात्रा निकाल चुकी हैं। सवाल उठता है कि पदयात्रा से क्या हासिल होता है, कब-कब पद यात्राओं ने राज्य सहित देश में हलचल मचाई, भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए- सवाल 1 : हर्षा रिछारिया के पदयात्रा निकालने का पूरा मामला क्या है? जवाब : हर्षा रिछारिया प्रयागराज महाकुंभ से ही सनातन को लेकर मुखर रही हैं। इसको लेकर सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हैं। उन्होंने सनातन को बचाने के लिए अप्रैल महीने में पदयात्रा निकालने का ऐलान किया था। हर्षा पदयात्रा क्यों कर रही हैं? इसके जवाब में वो कहती हैं कि युवाओं को सनातन के प्रति जागरूक करना है। ईश्वर मेरे लिए बहुत अच्छा रास्ता बनाता जा रहा है। गांव वाले बहुत अच्छे हैं। बहुत अच्छा खाना बनाकर खिलाया। अलीशा खान पदयात्रा के पहले दिन बुर्का और हिजाब में टीका लगाकर पहुंचीं थीं। हम लोगों के लिए ये गर्व की बात है। दूसरे धर्मों से लोग भी सनातन से जुड़ रहे हैं। हम अपने धर्म का प्रचार कर रहे हैं। किसी की बुराई नहीं कर रहे। अपनी इच्छा से जो भी आना चाहे, उसका स्वागत है। हर्षा रिछारिया की यात्रा में आगे-आगे चलने के लिए जो रथ बनाया गया है उस पर दो संदेश लिखे गए हैं। पहला संदेश- आदरणीय बंधुओं, बाबा साहेब अंबेडकर जयंती पर वृंदावन से हिंदू जोड़ो पदयात्रा शुरू कर रहे हैं। इसका उद्देश्य सनातन धर्म से विमुक्त हो चुके युवक-युवतियों को वापस अपने धर्म में लाना है। दूसरा संदेश- चलो जोड़ें इतिहास के पन्ने में अपना नाम कि हम नौजवानों ने भी कदम बढ़ाया था, अपने भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने में, हमने भी अपना फर्ज निभाया था। सवाल 2 : हर्षा रिछारिया की पदयात्रा को अलीगढ़ में क्यों रोक दिया गया? जवाब : हर्षा रिछारिया ने ऐलान किया था वो वृंदावन से यात्रा शुरू कर संभल में अपनी यात्रा समाप्त करेंगी। हालांकि, अब हर्षा संभल नहीं जा पाएंगी। उनकी यात्रा को प्रशासन ने बुलंदशहर से आगे जाने की अनुमति नहीं दी है। नरौरा से स्नान कर वह वापस लौट जाएंगी। यात्रा के रोके जाने के बाद 17 अप्रैल को हर्षा रिछारिया ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें वह रो रही हैं। कैप्शन में उन्होंने लिखा- धर्म के रास्ते पर चलना इतना आसान नहीं होता। परीक्षा, त्याग, समर्पण के बिना कुछ प्राप्त नहीं होता। ये आंसू किसी तकलीफ के नहीं हैं बल्कि तीसरे दिन की पदयात्रा पूरी करने और हरिगढ़ (अलीगढ़) पहुंचने की खुशी के हैं। ADM सिटी ने इस यात्रा को रोकने के पीछे वजह बताई कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस ने ऐसा किया है। अलीगढ़ सीओ सिटी थर्ड अभय कुमार पांडेय के मुताबिक संभल के माहौल को देखते हुए उन्हें संभल न जाने को कहा गया था। वह नरौरा तक ही जाएंगी और गंगा स्नान कर लौट जाएंगी। ऐसा करने के पीछे बताया गया कि उनकी यात्रा आगे मुस्लिम बाहुल्य इलाकों से होकर गुजरनी थी। ऐसे में, विवाद की स्थिति हो सकती थी। इसी वजह से उन्हें आगे अनुमति नहीं दी गई। सवाल 3 : हर्षा रिछारिया कौन हैं? जवाब : जनवरी 2025 में शुरू हुए प्रयागराज महाकुंभ से पहले हर्षा रिछारिया की पहचान मात्र एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की थी। इंस्टाग्राम पर उनके लाखों फॉलोअर्स थे। फिर आया प्रयागराज महाकुंभ। 13 जनवरी को पहले अमृत स्नान के दौरान हर्षा रिछारिया निरंजनी अखाड़े की झांकी में रथ पर साधु-संतों के साथ बैठी नजर आईं। मीडिया ने उन्हें ‘सुंदर साध्वी’ का टैग दिया। एक मीडिया संस्थान को दी गई बाइट में उन्होंने कहा कि वह संन्यासी या तपस्वी नहीं हैं, बस अखाड़े से जुड़ी होने की वजह से बैठी हैं। हर्षा का यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इसके बाद इस बात पर विवाद खड़ा हो गया कि अगर वो साध्वी नहीं हैं तो साधु-संतों ने अपनी झांकी के रथ पर हर्षा को क्यों बैठाया? संतों ने इसे गलत बताया। तब निरंजनी अखाड़े ने सफाई देते हुए हर्षा रिछारिया से अपना पल्ला झाड़ लिया। इस पूरे विवाद में हर्षा रिछारिया खुद को सच्चा सनातनी और सनातन धर्म को आगे बढ़ाने की बात दोहराती रहीं। विवाद बढ़ने पर अंततः उन्हें महाकुंभ छोड़कर जाना पड़ा। सवाल 4 : धार्मिक पदयात्राएं क्यों की जाती हैं? जवाब : धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक किसी पवित्र स्थल तक पैदल पदयात्रा करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है। धार्मिक पदयात्रा करने से मानसिक शांति और भगवान का आशीर्वाद मिलता है। इन्हें अध्यात्म का सफर माना गया है। हिंदू धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि जो कोई भी भगवान शिव, श्री हरि विष्णु और देवी मां के धामों तक पदयात्रा करके पहुंचता है उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है। सवाल 5 : भारत में पदयात्राओं का इतिहास कितना पुराना है? जवाब : भारत में धार्मिक और राजनीतिक दोनों ही पदयात्राओं का पुराना इतिहास है। धार्मिक पदयात्राओं की बात करें तो इसका इतिहास उत्तर वैदिक काल तक जाता है। करीब छठी सदी ईसा पूर्व का यह वह समय था, जब लोग तीर्थ स्थानों तक पदयात्रा करते हुए जाते थे। बात राजनीतिक पदयात्राओं की करें तो आधुनिक भारत में महात्मा गांधी का उदाहरण दिया जाता है। महात्मा गांधी ने भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजादी की लड़ाई में पदयात्रा का सफल रूप से राजनीतिक इस्तेमाल किया था। भारत में एक तरह से राजनीति के संदर्भ में पदयात्रा का जन्म यहीं से माना जाता है। 1930 में जब ब्रिटिश हुकूमत ने भारत के लोगों पर नमक टैक्स लगा दिया, तब महात्मा गांधी ने गुजरात के साबरमती आश्रम से दांडी तक मार्च निकाला था। इस पदयात्रा में वो जहां-जहां से गुजरे लाखों भारतीय उनके साथ जुड़ते गए। फिर 1933 में महात्मा गांधी ने छुआछूत के खिलाफ एक और यात्रा निकाली थी। 1951 में आचार्य विनोबा भावे ने इस राजनीतिक तरीके का इस्तेमाल भूदान आंदोलन में किया था। सवाल 6 : भारत की प्रमुख राजनीतिक यात्राएं कौन-कौन सी रही हैं? जवाब : हाल के कुछ सालों में चर्चा के केंद्र में रही राजनीतिक यात्राओं की बात करें तो 2023 की राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ सबसे ऊपर आती है। आजादी के बाद की ऐसी ही कुछ यादगार राजनीतिक यात्राएं- 1983 में चंद्रशेखर की भारत यात्रा- युवा तुर्क के तौर पर पहचाने जाने वाले पूर्व PM चंद्रशेखर ने 1983 में पदयात्रा की थी। कन्याकुमारी से दिल्ली तक की गई इस यात्रा को चंद्रशेखर ने भारत यात्रा नाम दिया था। उनकी यह भारत यात्रा 4,000 किमी से अधिक की थी। 6 जनवरी 1983 को कन्याकुमारी के विवेकानंद स्मारक से शुरू हुई यह यात्रा 25 जून 1984 को दिल्ली के राजघाट पर खत्म हुई। चंद्रशेखर को इस यात्रा का तत्काल राजनीतिक फायदा तो नहीं मिला, लेकिन साल 1990 में वे देश के 8वें प्रधानमंत्री चुने गए। हालांकि मार्च 1991 में बहुमत की कमी के चलते चंद्रशेखर की सरकार गिर गई और उन्होंने PM पद से इस्तीफा दे दिया। 2003 की YSR की यात्रा- 9 अप्रैल 2003 को आंध्र प्रदेश के नेता वाई एस राजशेखर रेड्डी ने 2 महीने की पदयात्रा की शुरुआत की। अपनी 1,500 किमी की इस यात्रा के दौरान वाईएसआर ने 11 जिलों का दौरा किया और कई पब्लिक मीटिंग्स में हिस्सा लिया। यात्रा के दौरान वह लोगों से मिले और उनकी समस्याएं सुनीं। इस यात्रा का फायदा उन्हें 2004 के विधानसभा चुनाव में मिला। 2013 की चंद्रबाबू नायडू की यात्रा- वाई एस रेड्डी की पदयात्रा की वजह से चंद्रबाबू नायडू ने 2004 में CM की कुर्सी गंवाई थी। तेलुगु देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू ने 2013 में 1,700 किमी लंबी पदयात्रा की। नायडू ने साल 2014 में विधानसभा चुनाव लड़ा और राज्य के मुख्यमंत्री चुने गए। चंद्रबाबू ने 1989 में भी पदयात्रा की थी। 2017 की दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा- कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सितंबर 2017 में 6 महीने की नर्मदा यात्रा की शुरुआत की। दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कुल 230 विधानसभा सीटों में से 114 सीटों पर जीत मिली थी। हालांकि दोनों ही पार्टियां बहुमत के आंकड़े से 116 से दूर थीं। भाजपा को 109 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। बाद में कांग्रेस ने बसपा और सपा से गठबंधन कर सरकार बनाई थी। 2022 की प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा- 2 अक्टूबर 2022 को जन सुराज के मुखिया प्रशांत किशोर ने पदयात्रा की शुरुआत की थी। इस पदयात्रा की शुरुआत उन्होंने पश्चिम चंपारण जिले के ऐतिहासिक भितिहारवा गांव में उस गांधी आश्रम से की, जहां से महात्मा गांधी ने साल 1917 में अपना पहला सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था। पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री ने भी निकाली थी पदयात्रा: बाबा बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री ने भी नवंबर 2024 में पदयात्रा निकाली थी। पदयात्रा को नाम दिया सनातन हिंदू एकता यात्रा। ये पदयात्रा 21 नवंबर से 29 नवंबर तक बागेश्वर धाम से ओरछा धाम तक चली। यात्रा का मुख्य उद्देश्य हिंदू धर्म की एकता को मजबूत करना और सनातन धर्म का प्रचार करना था। ——————- ये भी पढ़ें: क्या सांप बदला लेता है:मेरठ में युवक को 10 बार काटकर बेड पर पड़ा रहा; यूपी में 5 साल में 3 हजार से ज्यादा मौतें मेरठ में एक युवक को सांप ने 10 बार डसा, जिससे उसकी मौत हो गई। सांप युवक को डसने के बाद वहां से हटा नहीं, उसकी डेडबॉडी के पास दुबककर बैठा रहा। सुबह उठने पर घरवालों ने जब यह देखा, तो शोर मचाने लगे। सपेरे को बुलाकर सांप को हटवाया और युवक को अस्पताल लेकर भागे। वहां डॉक्टरों ने युवक को मृत घोषित कर दिया। इसे लेकर क्षेत्र में तरह-तरह की चर्चाएं हैं। (पढ़ें पूरी खबर) उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
हर्षा रिछारिया की पदयात्रा बीच में रुकी:राहुल गांधी-धीरेंद्र शास्त्री भी कर चुके हैं पदयात्रा; जानिए इससे क्या हासिल होता है
