पंजाब के 32 साल पुराने अपहरण, अवैध हिरासत, गुमशुदगी और हत्या के दो मामलों में सीबीआई की विशेष अदालत ने महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं। पहले मामले में जज मनजोत कौर ने थाना सरहाली जिला तरन तारन के एसएचओ रहे सुरिंदरपाल सिंह को 10 साल की सजा सुनाई। जबकि दूसरे मामले में विशेष न्यायाधीश राकेश गुप्ता ने पूर्व एसएचओ और दो पुलिस कर्मियों को दोषी करार दिया है। दोनों ही मामले 1992 में तरन तारन में हुए झूठे मामलों से जुड़े हैं। पहला मामला- 31 अक्टूबर 1992 की शाम, पुलिस ने एएसआई अवतार सिंह के नेतृत्व में एक टीम के जरिए सुखदेव सिंह (सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, लोपोके, अमृतसर के वाइस प्रिंसिपल) और उनके 80 वर्षीय ससुर सुलक्षण सिंह (स्वतंत्रता सेनानी) को हिरासत में लिया। यह हिरासत थाना सरहाली, तरन तारन में 3 दिन तक चली, जहां परिजनों और शिक्षकों ने उनसे मुलाकात की। लेकिन तीन दिन बाद, दोनों का कोई पता नहीं चला। सुखदेव सिंह की पत्नी सुखवंत कौर ने उच्च अधिकारियों से शिकायत की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। बाद में, यह खुलासा हुआ कि हिरासत में प्रताड़ना के दौरान सुखदेव सिंह की मौत हो गई थी और उनकी लाश को उनके ससुर सुलक्खण सिंह के साथ हरिके नहर में फेंक दिया गया। जानें क्या-क्या सजा दी गई थाना सरहाली, जिला तरनतारन के एसएचओ रहे सुरिंदरपाल सिंह को दोषी करार देते हुए विभिन्न धाराओं के तहत कठोर सजा दी गई है। सुरिंदरपाल सिंह का आपराधिक इतिहास यह वही सुरिंदरपाल सिंह है जो मानवाधिकार कार्यकर्ता जसवंत सिंह खालड़ा हत्या मामले में पहले ही आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। उसे तरनतारन के जीयो बाला गांव के चार सदस्यों के अपहरण और गुमशुदगी के एक अन्य मामले में भी 10 साल की सजा सुनाई जा चुकी है। दूसरे मामले में एचएचओ सहित दो अन्य दोषी करार 1992 में दो युवकों, जगदीप सिंह उर्फ मक्खन (पंजाब पुलिस सिपाही) और गुरनाम सिंह उर्फ पाली (एसपीओ), का अपहरण कर फर्जी मुठभेड़ में हत्या की गई और शवों को ‘लावारिस’ बताकर जला दिया गया। सीबीआई अदालत के न्यायाधीश राकेश गुप्ता ने एसएचओ गुरबचन सिंह, एएसआई रेशम सिंह और पुलिसकर्मी हंस राज सिंह को धारा 302 और 120-बी के तहत दोषी करार दिया। तीनों को हिरासत में लेकर जेल भेजा गया। सजा का ऐलान मंगलवार को किया जाएगा। महिला की भी हुई थी मौत 18 नवंबर 1992 को पुलिस ने मृतक मक्खन सिंह घर पर फायरिंग कर उसका अपहरण किया था। फायरिंग में उसकी सास सविंदर कौर की मौत हो गई। 21 नवंबर 1992 को गुरनाम सिंह को उसके घर से उठाया गया। पुलिस ने 30 नवंबर 1992 को फर्जी मुठभेड़ में दोनों की हत्या की और शवों को ‘लावारिस’ बताकर अंतिम संस्कार कर दिया। एफआईआर में झूठी कहानी गढ़ी गई कि मुठभेड़ में आतंकवादी मारे गए। सीबीआई जांच में खुलासा सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मामला दर्ज किया। जांच में खुलासा हुआ कि यह अवैध हिरासत और हत्या का मामला था। 1997 में सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की और 2021 में एक आरोपी अर्जुन सिंह की मृत्यु के कारण मामला बंद कर दिया गया। पंजाब के 32 साल पुराने अपहरण, अवैध हिरासत, गुमशुदगी और हत्या के दो मामलों में सीबीआई की विशेष अदालत ने महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं। पहले मामले में जज मनजोत कौर ने थाना सरहाली जिला तरन तारन के एसएचओ रहे सुरिंदरपाल सिंह को 10 साल की सजा सुनाई। जबकि दूसरे मामले में विशेष न्यायाधीश राकेश गुप्ता ने पूर्व एसएचओ और दो पुलिस कर्मियों को दोषी करार दिया है। दोनों ही मामले 1992 में तरन तारन में हुए झूठे मामलों से जुड़े हैं। पहला मामला- 31 अक्टूबर 1992 की शाम, पुलिस ने एएसआई अवतार सिंह के नेतृत्व में एक टीम के जरिए सुखदेव सिंह (सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, लोपोके, अमृतसर के वाइस प्रिंसिपल) और उनके 80 वर्षीय ससुर सुलक्षण सिंह (स्वतंत्रता सेनानी) को हिरासत में लिया। यह हिरासत थाना सरहाली, तरन तारन में 3 दिन तक चली, जहां परिजनों और शिक्षकों ने उनसे मुलाकात की। लेकिन तीन दिन बाद, दोनों का कोई पता नहीं चला। सुखदेव सिंह की पत्नी सुखवंत कौर ने उच्च अधिकारियों से शिकायत की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। बाद में, यह खुलासा हुआ कि हिरासत में प्रताड़ना के दौरान सुखदेव सिंह की मौत हो गई थी और उनकी लाश को उनके ससुर सुलक्खण सिंह के साथ हरिके नहर में फेंक दिया गया। जानें क्या-क्या सजा दी गई थाना सरहाली, जिला तरनतारन के एसएचओ रहे सुरिंदरपाल सिंह को दोषी करार देते हुए विभिन्न धाराओं के तहत कठोर सजा दी गई है। सुरिंदरपाल सिंह का आपराधिक इतिहास यह वही सुरिंदरपाल सिंह है जो मानवाधिकार कार्यकर्ता जसवंत सिंह खालड़ा हत्या मामले में पहले ही आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। उसे तरनतारन के जीयो बाला गांव के चार सदस्यों के अपहरण और गुमशुदगी के एक अन्य मामले में भी 10 साल की सजा सुनाई जा चुकी है। दूसरे मामले में एचएचओ सहित दो अन्य दोषी करार 1992 में दो युवकों, जगदीप सिंह उर्फ मक्खन (पंजाब पुलिस सिपाही) और गुरनाम सिंह उर्फ पाली (एसपीओ), का अपहरण कर फर्जी मुठभेड़ में हत्या की गई और शवों को ‘लावारिस’ बताकर जला दिया गया। सीबीआई अदालत के न्यायाधीश राकेश गुप्ता ने एसएचओ गुरबचन सिंह, एएसआई रेशम सिंह और पुलिसकर्मी हंस राज सिंह को धारा 302 और 120-बी के तहत दोषी करार दिया। तीनों को हिरासत में लेकर जेल भेजा गया। सजा का ऐलान मंगलवार को किया जाएगा। महिला की भी हुई थी मौत 18 नवंबर 1992 को पुलिस ने मृतक मक्खन सिंह घर पर फायरिंग कर उसका अपहरण किया था। फायरिंग में उसकी सास सविंदर कौर की मौत हो गई। 21 नवंबर 1992 को गुरनाम सिंह को उसके घर से उठाया गया। पुलिस ने 30 नवंबर 1992 को फर्जी मुठभेड़ में दोनों की हत्या की और शवों को ‘लावारिस’ बताकर अंतिम संस्कार कर दिया। एफआईआर में झूठी कहानी गढ़ी गई कि मुठभेड़ में आतंकवादी मारे गए। सीबीआई जांच में खुलासा सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मामला दर्ज किया। जांच में खुलासा हुआ कि यह अवैध हिरासत और हत्या का मामला था। 1997 में सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की और 2021 में एक आरोपी अर्जुन सिंह की मृत्यु के कारण मामला बंद कर दिया गया। पंजाब | दैनिक भास्कर
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