मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एमपी के बाहर दूसरे राज्यों में चुनाव प्रचार करने गए थे। डॉ. मोहन यादव ने 8 राज्यों की 33 लोकसभा सीटों पर प्रचार किया। इनमें से बीजेपी ने 13 सीटें जीतीं। वहीं शिवराज 3 राज्यों की 13 सीटों पर प्रचार के लिए पहुंचे थे। इनमें से बीजेपी ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की। बीजेपी ने डॉ. मोहन यादव को यूपी, बिहार और झारखंड और बिहार की ऐसी सीटों पर प्रचार के लिए भेजा था, जो यादव बाहुल सीटें हैं, जबकि शिवराज ने दिल्ली, झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीटों पर प्रचार किया था। वहीं बीजेपी नेताओं का कहना है कि बाहरी राज्यों की कौन सी सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की, कौन सी सीटें हार गई इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। एनडीए की सरकार सभी के प्रयासों से बनी है। पढ़िए सीएम मोहन यादव और पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान जिन सीटों पर प्रचार के लिए गए वहां क्या नतीजा रहा… डॉ. मोहन यादव का पूरा अभियान यादव लैंड के इर्दगिर्द भाजपा ने उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा और तेलंगाना में मोहन यादव का पूरा अभियान यादव बहुल इलाकों में ही बनाया था। चार चरणों तक मध्य प्रदेश में पार्टी का नेतृत्व करने की वजह से वे मध्यप्रदेश में ही डटे रहे। उत्तर प्रदेश में मोहन यादव ने वाराणसी, लखनऊ, झांसी, हमीरपुर, अमेठी, इटावा, एटा, मैनपुरी, कन्नौज, फिरोजाबाद, बदायूं, आजमगढ़, फैजाबाद, देवरिया, संत कबीर नगर, कुशीनगर, महाराजगंज, गाजीपुर, जौनपुर और राबर्ट्सगंज में प्रचार किया था। वे तीसरे-चौथे चरण की दो-तीन सीटों पर ही पहुंच पाए। वहीं बिहार के पटना साहिब, पाटलीपुत्र और गया में भी यादव वोट महत्वपूर्ण हैं। वहीं नार्थ-ईस्ट दिल्ली को तो यूपी-बिहार-मध्य प्रदेश के ओबीसी का गढ़ माना जाता है। झारखंड की रांची, गोड्डा, कोडरमा, हजारीबाग, दुमका और राजमहल सीटों पर भी यादव वोटों का प्रभाव माना जाता है। हरियाणा के रोहतक, तेलंगाना के खम्मम और महाराष्ट्र की साउथ मुंबई सीट पर भी इसी रणनीति के तहत डॉ. यादव को प्रचार के लिए भेजा गया था। नार्थ-वेस्ट दिल्ली में तो यादव समाज के एक सम्मेलन भाजपा प्रत्याशी योगेंद्र चंदौलिया के समर्थन में शपथ दिलाई थी। महाराजगंज के बरगदवा में हुई जनसभा के दौरान जिले के 20 यादव ग्राम प्रधान (सरपंच) भाजपा के सदस्य बने। चुनावी सभाओं में पार्टी ने यादव चेहरे के तौर पर पेश किया मुख्यमंत्री डॉ. यादव को भाजपा ने यादव समाज को साधने का जिम्मा दिया था। हालांकि मोहन यादव ने कई मौकों पर ये कहा कि वे भाजपा के कार्यकर्ता के तौर पर प्रचार करने पहुंचे हैं। मैनपुरी की सभा में उन्होंने कहा कि उनकी विधानसभा में 500 वोटर भी यादव नहीं होंगे। उसके बाद भी भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया है। अमेठी के गौरीगंज में हुए उनके भाषण में तो उन्होंने भगवान कृष्ण का हवाला देते हुए कहा था कि कृष्ण ने अधर्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। आज भी वो स्थिति आ गई है। यही बात उन्होंने मैनपुरी की सभा में भी दोहराई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें यादव राजनीति का चेहरा बताया सपा के गढ़ इटावा में एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोहन यादव को यादव राजनीति का नया चेहरा बताया था। उन्होंने कहा – सपा वाले जिस समाज का ठेकेदार होने का दम भरते हैं वह भ्रम भी अब की बार टूट जाएगा। आज भी सपा को उम्मीदवार बनाने के लिए उनके परिवार के बाहर का कोई यादव नहीं मिला। वहीं भाजपा में कोई कार्यकर्ता बड़े से बड़े पद तक पहुंच सकता है। आज मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव अपने प्रदेश को दौड़ा रहे हैं। यादव लैंड में प्रचार के दौरान भाजपा के दूसरे स्टार प्रचारकों ने भी मोहन यादव का नाम जाति के बड़े राजनीतिक चेहरे के तौर पर इस्तेमाल किया। कोशिश यह थी कि यादव समाज को सपा का विकल्प दिया जाए। यूपी में उपचुनाव वाली सीट पर भी नहीं मिली सफलता भाजपा ने मुख्यमंत्री मोहन यादव को उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए हो रहे एक उप चुनाव में भी स्टार प्रचारक के तौर पर भेजा था। यह सीट थी सोनभद्र जिले की दुद्धी। मोहन यादव ने 30 मई को यहां एक जनसभा को संबोधित किया था और रोड शो में शामिल हुए थे। इन कोशिशों के बाद भी यहां से भाजपा उम्मीदवार श्रवण कुमार तीन हजार 208 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए। यह सीट सपा के विजय सिंह ने जीती है। अब जानिए शिवराज ने किन सीटों पर किया प्रचार पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के बाहर तीन राज्यों में प्रचार के लिए गए। इनमें दिल्ली की सभी सात सीटों पर उन्होंने जनसभा, रोड शो और कार्यकर्ता सम्मेलनों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर अरविंद केजरीवाल, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को घेरा। झारखंड की शहरी सीटों पर भी उन्होंने गठबंधन सरकार के भ्रष्टाचार पर ही बात की। वहीं पश्चिम बंगाल में उन्होंने ममता बनर्जी पर भ्रष्टाचार और मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगाए। शिवराज ने दिल्ली झारखंड में जिन सीटों पर प्रचार किया उन सभी पर भाजपा प्रत्याशी जीते हैं। वहीं पश्चिम बंगाल में सभी तीन सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा बोली सफलता-असफलता से फर्क नहीं पड़ता भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राकेश शर्मा का कहना था कि प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और मुख्यमंत्री मोहन यादव की अगुआई में जिस तरह का काम यहां हुआ है उसकी बदौलत 29 की 29 सीटों पर जीत मिली। संगठन में जो काम कर रहे हैं, उन वरिष्ठ नेताओं की मांग पूरे देश में होती है। सीएम डॉ.मोहन यादव, पूर्व सीएम शिवराज और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने दूसरे प्रदेशों में भी जाकर भाजपा का प्रचार किया। राकेश शर्मा कहते हैं कि इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता कि जहां इन नेताओं ने प्रचार किया वहां कितनी सीटों पर सफलता मिली और कितनों पर नहीं मिली। बड़ी बात यह है कि देश में सबसे अधिक मांग मध्य प्रदेश के भाजपा नेताओं की हुई। एक्सपर्ट बोले- यादव बाहुल सीटों का तिलिस्म नहीं तोड़ सकी भाजपा राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह का मानना है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में लालू और तेजस्वी यादव इस समाज के बड़े नेता हैं। यादव वोटर्स पर उनका पूरा प्रभाव है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव के मार्फत भाजपा दोनों राज्यों में की यादव बहुल सीटों का तिलिस्म तोड़ना चाहती थी। इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के मध्य-पूर्वी क्षेत्रों में मोहन यादव को प्रचार के लिए भेजा गया था। पश्चिमी यूपी के यादव लैंड में जब चुनाव थे तब मप्र में वोटिंग हो रही थी। ऐसे में वे पश्चिमी यूपी में ज्यादा समय नहीं दे सके। वे कहते हैं कि भाजपा की जो रणनीति थी, वह सफल होती नहीं दिखी है। मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एमपी के बाहर दूसरे राज्यों में चुनाव प्रचार करने गए थे। डॉ. मोहन यादव ने 8 राज्यों की 33 लोकसभा सीटों पर प्रचार किया। इनमें से बीजेपी ने 13 सीटें जीतीं। वहीं शिवराज 3 राज्यों की 13 सीटों पर प्रचार के लिए पहुंचे थे। इनमें से बीजेपी ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की। बीजेपी ने डॉ. मोहन यादव को यूपी, बिहार और झारखंड और बिहार की ऐसी सीटों पर प्रचार के लिए भेजा था, जो यादव बाहुल सीटें हैं, जबकि शिवराज ने दिल्ली, झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीटों पर प्रचार किया था। वहीं बीजेपी नेताओं का कहना है कि बाहरी राज्यों की कौन सी सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की, कौन सी सीटें हार गई इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। एनडीए की सरकार सभी के प्रयासों से बनी है। पढ़िए सीएम मोहन यादव और पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान जिन सीटों पर प्रचार के लिए गए वहां क्या नतीजा रहा… डॉ. मोहन यादव का पूरा अभियान यादव लैंड के इर्दगिर्द भाजपा ने उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा और तेलंगाना में मोहन यादव का पूरा अभियान यादव बहुल इलाकों में ही बनाया था। चार चरणों तक मध्य प्रदेश में पार्टी का नेतृत्व करने की वजह से वे मध्यप्रदेश में ही डटे रहे। उत्तर प्रदेश में मोहन यादव ने वाराणसी, लखनऊ, झांसी, हमीरपुर, अमेठी, इटावा, एटा, मैनपुरी, कन्नौज, फिरोजाबाद, बदायूं, आजमगढ़, फैजाबाद, देवरिया, संत कबीर नगर, कुशीनगर, महाराजगंज, गाजीपुर, जौनपुर और राबर्ट्सगंज में प्रचार किया था। वे तीसरे-चौथे चरण की दो-तीन सीटों पर ही पहुंच पाए। वहीं बिहार के पटना साहिब, पाटलीपुत्र और गया में भी यादव वोट महत्वपूर्ण हैं। वहीं नार्थ-ईस्ट दिल्ली को तो यूपी-बिहार-मध्य प्रदेश के ओबीसी का गढ़ माना जाता है। झारखंड की रांची, गोड्डा, कोडरमा, हजारीबाग, दुमका और राजमहल सीटों पर भी यादव वोटों का प्रभाव माना जाता है। हरियाणा के रोहतक, तेलंगाना के खम्मम और महाराष्ट्र की साउथ मुंबई सीट पर भी इसी रणनीति के तहत डॉ. यादव को प्रचार के लिए भेजा गया था। नार्थ-वेस्ट दिल्ली में तो यादव समाज के एक सम्मेलन भाजपा प्रत्याशी योगेंद्र चंदौलिया के समर्थन में शपथ दिलाई थी। महाराजगंज के बरगदवा में हुई जनसभा के दौरान जिले के 20 यादव ग्राम प्रधान (सरपंच) भाजपा के सदस्य बने। चुनावी सभाओं में पार्टी ने यादव चेहरे के तौर पर पेश किया मुख्यमंत्री डॉ. यादव को भाजपा ने यादव समाज को साधने का जिम्मा दिया था। हालांकि मोहन यादव ने कई मौकों पर ये कहा कि वे भाजपा के कार्यकर्ता के तौर पर प्रचार करने पहुंचे हैं। मैनपुरी की सभा में उन्होंने कहा कि उनकी विधानसभा में 500 वोटर भी यादव नहीं होंगे। उसके बाद भी भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया है। अमेठी के गौरीगंज में हुए उनके भाषण में तो उन्होंने भगवान कृष्ण का हवाला देते हुए कहा था कि कृष्ण ने अधर्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। आज भी वो स्थिति आ गई है। यही बात उन्होंने मैनपुरी की सभा में भी दोहराई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें यादव राजनीति का चेहरा बताया सपा के गढ़ इटावा में एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोहन यादव को यादव राजनीति का नया चेहरा बताया था। उन्होंने कहा – सपा वाले जिस समाज का ठेकेदार होने का दम भरते हैं वह भ्रम भी अब की बार टूट जाएगा। आज भी सपा को उम्मीदवार बनाने के लिए उनके परिवार के बाहर का कोई यादव नहीं मिला। वहीं भाजपा में कोई कार्यकर्ता बड़े से बड़े पद तक पहुंच सकता है। आज मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव अपने प्रदेश को दौड़ा रहे हैं। यादव लैंड में प्रचार के दौरान भाजपा के दूसरे स्टार प्रचारकों ने भी मोहन यादव का नाम जाति के बड़े राजनीतिक चेहरे के तौर पर इस्तेमाल किया। कोशिश यह थी कि यादव समाज को सपा का विकल्प दिया जाए। यूपी में उपचुनाव वाली सीट पर भी नहीं मिली सफलता भाजपा ने मुख्यमंत्री मोहन यादव को उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए हो रहे एक उप चुनाव में भी स्टार प्रचारक के तौर पर भेजा था। यह सीट थी सोनभद्र जिले की दुद्धी। 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अध्यक्ष वीडी शर्मा और मुख्यमंत्री मोहन यादव की अगुआई में जिस तरह का काम यहां हुआ है उसकी बदौलत 29 की 29 सीटों पर जीत मिली। संगठन में जो काम कर रहे हैं, उन वरिष्ठ नेताओं की मांग पूरे देश में होती है। सीएम डॉ.मोहन यादव, पूर्व सीएम शिवराज और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने दूसरे प्रदेशों में भी जाकर भाजपा का प्रचार किया। राकेश शर्मा कहते हैं कि इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता कि जहां इन नेताओं ने प्रचार किया वहां कितनी सीटों पर सफलता मिली और कितनों पर नहीं मिली। बड़ी बात यह है कि देश में सबसे अधिक मांग मध्य प्रदेश के भाजपा नेताओं की हुई। एक्सपर्ट बोले- यादव बाहुल सीटों का तिलिस्म नहीं तोड़ सकी भाजपा राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह का मानना है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में लालू और तेजस्वी यादव इस समाज के बड़े नेता हैं। यादव वोटर्स पर उनका पूरा प्रभाव है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव के मार्फत भाजपा दोनों राज्यों में की यादव बहुल सीटों का तिलिस्म तोड़ना चाहती थी। इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के मध्य-पूर्वी क्षेत्रों में मोहन यादव को प्रचार के लिए भेजा गया था। पश्चिमी यूपी के यादव लैंड में जब चुनाव थे तब मप्र में वोटिंग हो रही थी। ऐसे में वे पश्चिमी यूपी में ज्यादा समय नहीं दे सके। वे कहते हैं कि भाजपा की जो रणनीति थी, वह सफल होती नहीं दिखी है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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