UP में बिजलीकर्मियों की हड़ताल कैसे टली:ड्यूटी से गायब रहे तो नौकरी जाएगी, इस फरमान से झुक गए कर्मचारी

UP में बिजलीकर्मियों की हड़ताल कैसे टली:ड्यूटी से गायब रहे तो नौकरी जाएगी, इस फरमान से झुक गए कर्मचारी

यूपी में पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण के विरोध में आर-पार की लड़ाई पर उतर चुके कर्मचारियों ने कदम पीछे खींच लिए हैं। 29 मई से प्रदेश के एक लाख संविदा और नियमित कर्मचारियों ने सामूहिक रूप से कार्य बहिष्कार की घोषणा कर रखी थी। लेकिन, कंपनी की ओर से बर्खास्तगी की चेतावनी के चलते कर्मचारी बैकफुट पर आ गए। प्रदेश सरकार की ओर से 7 दिसंबर, 2024 को ही लागू किए गए एसेंशियल सर्विसेज मेंटेनेंस एक्ट (एस्मा) से भी कर्मचारी दबाव में थे। बिजली कंपनियों की ओर से 500 से अधिक इंजीनियरों काे नोटिस जारी कर कार्य बहिष्कार में शामिल होने पर कार्रवाई की चेतावनी भी दी जा चुकी थी। हालांकि विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने आम लोगों की तकलीफों का हवाला देते हुए 29 मई को कार्य बहिष्कार की घोषणा को स्थगित कर दिया है। हालांकि, निजीकरण के विरोध में राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद की ओर से नियामक आयोग में मंगलवार को एक याचिका दायर की गई। इसमें निजीकरण की प्रक्रिया को असंवैधानिक बताते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की गई है। बिजलीकर्मियों के कार्य बहिष्कार से कौन सी सेवाएं प्रभावित होतीं? बिजली कंपनी की ओर से क्या वैकल्पिक व्यवस्था की गई थी? कंपनी अधिकारियों ने आंदोलन कुचलने के लिए कौन से नियम बदले? निजीकरण की कौन-सी प्रक्रिया नहीं अपनाने पर नियामक आयोग एक्शन ले सकता है? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… 181 दिनों से बिजली कर्मचारी शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे
निजीकरण के विरोध में कार्य बहिष्कार के निर्णय पर पहुंचे कर्मचारियों की पीड़ा विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने व्यक्त की। कहा- 181 दिन से हम शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे हैं। इस दौरान किसी उपभोक्ता को कोई परेशानी नहीं हुई। ऐसा इतिहास में कभी नहीं हुआ कि इतने दिनों से लगातार एक आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है। करीब 1 लाख बिजली कर्मचारी, इंजीनियर, जूनियर इंजीनियर, संविदा कर्मचारी लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। कार्य बहिष्कार की नोटिस 9 अप्रैल को ही दे दी थी
दुबे ने आगे बताते हैं- कार्य बहिष्कार की नोटिस हमने 9 अप्रैल को लखनऊ में आयोजित विशाल रैली में दे दी थी। उसमें चरणबद्ध तरीके से आंदोलन की जानकारी दी गई थी। इसमें 29 मई से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार भी शामिल था। बिजली उपभोक्ता फोरम, किसान यूनियन से बातचीत और इस गर्मी में आम जनता को किसी तरह की परेशानी न हो, इसके चलते हमने कार्य बहिष्कार को टाल दिया है। लेकिन, प्रबंधन की वीडियो कांफ्रेंसिंग (VC) का बहिष्कार जारी रहेगा। मंगलवार को भी उनकी VC का 233 इंजीनियरों ने बहिष्कार किया। सीएम का ध्यानाकर्षण के लिए कार्य बहिष्कार का लिया था निर्णय
दुबे ने बताया- हमारा उद्देश्य केवल प्रदेश सरकार और सीएम का ध्यान आकर्षण कराना था कि निजीकरण का निर्णय आम जनता के हित में नहीं है। इसकी जद में आने वाले बुंदेलखंड और पूर्वांचल के 42 जनपदों में प्रदेश की बेहद गरीब जनता रहती है। वे निजीकरण का बोझ नहीं उठा पाएंगे। आईटीआई और पॉलिटेक्निक के 2 हजार छात्रों को किया है ट्रेंड
उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) और सरकार ने कार्य बहिष्कार की सूरत में कई वैकल्पिक व्यवस्थाएं बनाई थीं। आउटसोर्सिंग पर 7000 कर्मियों के अलावा आईटीआई, पॉलिटेक्निक के करीब 2 हजार स्टूडेंट को विषम परिस्थितियों में व्यवस्था संभालने के लिए तैयार किया गया। निलंबन की चेतावनी के बाद झुके कर्मचारी
पूर्वांचल, दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों में 29 मई को प्रस्तावित कर्मचारियों के अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार से पहले 500 कर्मियों को नोटिस जारी किया। नोटिस में चेतावनी दी गई कि यदि कोई कर्मचारी बहिष्कार में शामिल होता है या इसके लिए प्रेरित करता है, तो उसके खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। विभाग की ओर से बताया गया है कि प्रदेश में एस्मा लागू है। इसके बावजूद कुछ कर्मचारी विरोध प्रदर्शन कर शासकीय कार्यों को प्रभावित कर रहे हैं। विभाग ने सख्त रुख अपनाते हुए साफ कर दिया कि किसी भी प्रकार की बाधा बर्दाश्त नहीं की जाएगी। बिजली प्रबंधन ने कार्य बहिष्कार में शामिल कर्मचारियों को बर्खास्तगी की चेतावनी दी। उनकी गतिविधियों को व्यक्तिगत फाइल में दर्ज करने का निर्देश दिए। इससे उनकी पदोन्नति और अन्य लाभ प्रभावित हो सकते हैं। प्रशासन की ओर से भी सभी जिलाधिकारी और एसपी को संबंधित जिलों में कानून व्यवस्था बनाएं रखने के निर्देश दिए गए हैं। जबरन बिजली आपूर्ति बंद करने का प्रयास करने वालों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए हैं कि कार्य बहिष्कार के दौरान किसी भी सरकारी कार्यालय में धरना या प्रदर्शन न हो। इन सारी सख्तियों के बाद बिजली कर्मचारी बैकफुट पर आ गए। उन्होंने अपना कार्य बहिष्कार स्थगित कर दिया। इस वजह से कार्य बहिष्कार पर अड़े थे कर्मचारी कंपनी का दावा कर्मचारियों का हित रहेगा सुरक्षित
बिजली प्रबंधन ने कर्मचारियों को आश्वासन दिया है कि निजीकरण के बाद भी उनके हित, जैसे प्रोन्नति, सेवानिवृत्ति लाभ और रियायती बिजली सुरक्षित रहेंगे। UPPCL ने पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण की प्रक्रिया को तेज कर दिया है। इसमें बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने नई कंपनियां बनाने और अन्य निर्णयों के लिए प्रबंधन को अधिकृत किया है। प्रबंधन का कहना है कि निजीकरण से तकनीकी उन्नयन और बेहतर प्रबंधन के माध्यम से उपभोक्ताओं को निर्बाध और गुणवत्तापूर्ण बिजली आपूर्ति सुनिश्चित होगी। उपभोक्ता परिषद ने निजीकरण के विरोध में याचिका लगाई
उधर, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने सोमवार को उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग में एक विधिक लोक महत्व प्रस्ताव (याचिका) दाखिल किया। परिषद ने हरियाणा विद्युत नियामक आयोग की नजीर देते हुए मांग की है कि बिजली कंपनियों की वित्तीय स्थिति की स्वतंत्र समीक्षा कराकर ही सरकार को सलाह दी जाए। दरअसल, उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) ने 25 नवंबर, 2024 को पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण का ऐलान किया था। इससे पहले कोई स्वतंत्र वित्तीय मूल्यांकन या रिपोर्ट सामने नहीं रखी गई। अब इस फैसले पर सवाल उठाते हुए उपभोक्ता परिषद ने नियामक आयोग से धारा 86(2) के तहत स्वतंत्र सलाह देने की मांग की है। हरियाणा मॉडल का हवाला
परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि 2015 में हरियाणा विद्युत नियामक आयोग ने CAG रिपोर्ट के आधार पर निजीकरण की सिफारिश की थी। आयोग ने पाया था कि हरियाणा में 9 बिजली कंपनियां घाटे में थीं। परिषद ने इसी तर्ज पर यूपी में भी निजीकरण से पहले वित्तीय हालात की निष्पक्ष जांच की मांग की है। लाइसेंस जारी करने वाला नियामक आयोग ही ले सकता है निर्णय
परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने कहा कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131 का जिस तरह प्रयोग किया जा रहा है, वह असंवैधानिक है। यह धारा केवल एक बार ‘राज्य विद्युत बोर्ड’ को ‘पावर कॉरपोरेशन’ में बदलने के लिए थी, न कि बार-बार बिजली कंपनियों के निजीकरण के लिए। वितरण कंपनियों को लाइसेंस राज्य विद्युत नियामक आयोग देती है। ऐसे में कोई भी बदलाव का निर्णय वहीं कर सकती है। वर्मा ने बताया कि उत्तर प्रदेश विद्युत सुधार अधिनियम 1999 और विद्युत अधिनियम 2003 का मूल उद्देश्य विद्युत क्षेत्र में उत्तर प्रदेश को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनाना था। इसके बावजूद बिजली कंपनियां आत्मनिर्भर नहीं बन पा रही हैं, तो विद्युत नियामक आयोग को इसकी समीक्षा करनी चाहिए थी। फिर विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 86(2) के तहत राज्य सरकार को सलाह देना चाहिए कि बिजली कंपनियां घाटे से उबरने के लिए कैसे और क्या कदम उठाए। ————————- ये खबर भी पढ़ें… अब भाजपा ने अखिलेश का DNA सोनागाछी-जीबी रोड का बताया, लखनऊ में लगा पोस्टर, लिखा- पिता को घर निकाला, आपके DNA में खोट डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के बीच DNA विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब डिप्टी सीएम के समर्थन में बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा मैदान में उतर आया है। शहरभर की दीवारों पर पोस्टर लगाए गए हैं, जिसमें अखिलेश से सवाल पूछा गया है। पोस्टर में लिखा है, जो अपने पिता और चाचा को पार्टी से निकाल चुका है, वो पहले खुद अपना डीएनए टेस्ट करवा ले, सारी सच्चाई सामने आ जाएगी। इससे पहले सपा की ओर से ब्रजेश पाठक के डीएनए को लेकर सोशल मीडिया पर तंज कसा गया था। लखनऊ के चौराहों पर सपा समर्थकों ने पोस्टर भी चिपकाए थे। पढ़ें पूरी खबर यूपी में पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण के विरोध में आर-पार की लड़ाई पर उतर चुके कर्मचारियों ने कदम पीछे खींच लिए हैं। 29 मई से प्रदेश के एक लाख संविदा और नियमित कर्मचारियों ने सामूहिक रूप से कार्य बहिष्कार की घोषणा कर रखी थी। लेकिन, कंपनी की ओर से बर्खास्तगी की चेतावनी के चलते कर्मचारी बैकफुट पर आ गए। प्रदेश सरकार की ओर से 7 दिसंबर, 2024 को ही लागू किए गए एसेंशियल सर्विसेज मेंटेनेंस एक्ट (एस्मा) से भी कर्मचारी दबाव में थे। बिजली कंपनियों की ओर से 500 से अधिक इंजीनियरों काे नोटिस जारी कर कार्य बहिष्कार में शामिल होने पर कार्रवाई की चेतावनी भी दी जा चुकी थी। हालांकि विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने आम लोगों की तकलीफों का हवाला देते हुए 29 मई को कार्य बहिष्कार की घोषणा को स्थगित कर दिया है। हालांकि, निजीकरण के विरोध में राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद की ओर से नियामक आयोग में मंगलवार को एक याचिका दायर की गई। इसमें निजीकरण की प्रक्रिया को असंवैधानिक बताते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की गई है। बिजलीकर्मियों के कार्य बहिष्कार से कौन सी सेवाएं प्रभावित होतीं? बिजली कंपनी की ओर से क्या वैकल्पिक व्यवस्था की गई थी? कंपनी अधिकारियों ने आंदोलन कुचलने के लिए कौन से नियम बदले? निजीकरण की कौन-सी प्रक्रिया नहीं अपनाने पर नियामक आयोग एक्शन ले सकता है? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… 181 दिनों से बिजली कर्मचारी शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे
निजीकरण के विरोध में कार्य बहिष्कार के निर्णय पर पहुंचे कर्मचारियों की पीड़ा विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने व्यक्त की। कहा- 181 दिन से हम शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे हैं। इस दौरान किसी उपभोक्ता को कोई परेशानी नहीं हुई। ऐसा इतिहास में कभी नहीं हुआ कि इतने दिनों से लगातार एक आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है। करीब 1 लाख बिजली कर्मचारी, इंजीनियर, जूनियर इंजीनियर, संविदा कर्मचारी लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। कार्य बहिष्कार की नोटिस 9 अप्रैल को ही दे दी थी
दुबे ने आगे बताते हैं- कार्य बहिष्कार की नोटिस हमने 9 अप्रैल को लखनऊ में आयोजित विशाल रैली में दे दी थी। उसमें चरणबद्ध तरीके से आंदोलन की जानकारी दी गई थी। इसमें 29 मई से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार भी शामिल था। बिजली उपभोक्ता फोरम, किसान यूनियन से बातचीत और इस गर्मी में आम जनता को किसी तरह की परेशानी न हो, इसके चलते हमने कार्य बहिष्कार को टाल दिया है। लेकिन, प्रबंधन की वीडियो कांफ्रेंसिंग (VC) का बहिष्कार जारी रहेगा। मंगलवार को भी उनकी VC का 233 इंजीनियरों ने बहिष्कार किया। सीएम का ध्यानाकर्षण के लिए कार्य बहिष्कार का लिया था निर्णय
दुबे ने बताया- हमारा उद्देश्य केवल प्रदेश सरकार और सीएम का ध्यान आकर्षण कराना था कि निजीकरण का निर्णय आम जनता के हित में नहीं है। इसकी जद में आने वाले बुंदेलखंड और पूर्वांचल के 42 जनपदों में प्रदेश की बेहद गरीब जनता रहती है। वे निजीकरण का बोझ नहीं उठा पाएंगे। आईटीआई और पॉलिटेक्निक के 2 हजार छात्रों को किया है ट्रेंड
उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) और सरकार ने कार्य बहिष्कार की सूरत में कई वैकल्पिक व्यवस्थाएं बनाई थीं। आउटसोर्सिंग पर 7000 कर्मियों के अलावा आईटीआई, पॉलिटेक्निक के करीब 2 हजार स्टूडेंट को विषम परिस्थितियों में व्यवस्था संभालने के लिए तैयार किया गया। निलंबन की चेतावनी के बाद झुके कर्मचारी
पूर्वांचल, दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों में 29 मई को प्रस्तावित कर्मचारियों के अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार से पहले 500 कर्मियों को नोटिस जारी किया। नोटिस में चेतावनी दी गई कि यदि कोई कर्मचारी बहिष्कार में शामिल होता है या इसके लिए प्रेरित करता है, तो उसके खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। विभाग की ओर से बताया गया है कि प्रदेश में एस्मा लागू है। इसके बावजूद कुछ कर्मचारी विरोध प्रदर्शन कर शासकीय कार्यों को प्रभावित कर रहे हैं। विभाग ने सख्त रुख अपनाते हुए साफ कर दिया कि किसी भी प्रकार की बाधा बर्दाश्त नहीं की जाएगी। बिजली प्रबंधन ने कार्य बहिष्कार में शामिल कर्मचारियों को बर्खास्तगी की चेतावनी दी। उनकी गतिविधियों को व्यक्तिगत फाइल में दर्ज करने का निर्देश दिए। इससे उनकी पदोन्नति और अन्य लाभ प्रभावित हो सकते हैं। प्रशासन की ओर से भी सभी जिलाधिकारी और एसपी को संबंधित जिलों में कानून व्यवस्था बनाएं रखने के निर्देश दिए गए हैं। जबरन बिजली आपूर्ति बंद करने का प्रयास करने वालों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए हैं कि कार्य बहिष्कार के दौरान किसी भी सरकारी कार्यालय में धरना या प्रदर्शन न हो। इन सारी सख्तियों के बाद बिजली कर्मचारी बैकफुट पर आ गए। उन्होंने अपना कार्य बहिष्कार स्थगित कर दिया। इस वजह से कार्य बहिष्कार पर अड़े थे कर्मचारी कंपनी का दावा कर्मचारियों का हित रहेगा सुरक्षित
बिजली प्रबंधन ने कर्मचारियों को आश्वासन दिया है कि निजीकरण के बाद भी उनके हित, जैसे प्रोन्नति, सेवानिवृत्ति लाभ और रियायती बिजली सुरक्षित रहेंगे। UPPCL ने पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण की प्रक्रिया को तेज कर दिया है। इसमें बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने नई कंपनियां बनाने और अन्य निर्णयों के लिए प्रबंधन को अधिकृत किया है। प्रबंधन का कहना है कि निजीकरण से तकनीकी उन्नयन और बेहतर प्रबंधन के माध्यम से उपभोक्ताओं को निर्बाध और गुणवत्तापूर्ण बिजली आपूर्ति सुनिश्चित होगी। उपभोक्ता परिषद ने निजीकरण के विरोध में याचिका लगाई
उधर, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने सोमवार को उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग में एक विधिक लोक महत्व प्रस्ताव (याचिका) दाखिल किया। परिषद ने हरियाणा विद्युत नियामक आयोग की नजीर देते हुए मांग की है कि बिजली कंपनियों की वित्तीय स्थिति की स्वतंत्र समीक्षा कराकर ही सरकार को सलाह दी जाए। दरअसल, उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) ने 25 नवंबर, 2024 को पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण का ऐलान किया था। इससे पहले कोई स्वतंत्र वित्तीय मूल्यांकन या रिपोर्ट सामने नहीं रखी गई। अब इस फैसले पर सवाल उठाते हुए उपभोक्ता परिषद ने नियामक आयोग से धारा 86(2) के तहत स्वतंत्र सलाह देने की मांग की है। हरियाणा मॉडल का हवाला
परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि 2015 में हरियाणा विद्युत नियामक आयोग ने CAG रिपोर्ट के आधार पर निजीकरण की सिफारिश की थी। आयोग ने पाया था कि हरियाणा में 9 बिजली कंपनियां घाटे में थीं। परिषद ने इसी तर्ज पर यूपी में भी निजीकरण से पहले वित्तीय हालात की निष्पक्ष जांच की मांग की है। लाइसेंस जारी करने वाला नियामक आयोग ही ले सकता है निर्णय
परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने कहा कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131 का जिस तरह प्रयोग किया जा रहा है, वह असंवैधानिक है। यह धारा केवल एक बार ‘राज्य विद्युत बोर्ड’ को ‘पावर कॉरपोरेशन’ में बदलने के लिए थी, न कि बार-बार बिजली कंपनियों के निजीकरण के लिए। वितरण कंपनियों को लाइसेंस राज्य विद्युत नियामक आयोग देती है। ऐसे में कोई भी बदलाव का निर्णय वहीं कर सकती है। वर्मा ने बताया कि उत्तर प्रदेश विद्युत सुधार अधिनियम 1999 और विद्युत अधिनियम 2003 का मूल उद्देश्य विद्युत क्षेत्र में उत्तर प्रदेश को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनाना था। इसके बावजूद बिजली कंपनियां आत्मनिर्भर नहीं बन पा रही हैं, तो विद्युत नियामक आयोग को इसकी समीक्षा करनी चाहिए थी। फिर विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 86(2) के तहत राज्य सरकार को सलाह देना चाहिए कि बिजली कंपनियां घाटे से उबरने के लिए कैसे और क्या कदम उठाए। ————————- ये खबर भी पढ़ें… अब भाजपा ने अखिलेश का DNA सोनागाछी-जीबी रोड का बताया, लखनऊ में लगा पोस्टर, लिखा- पिता को घर निकाला, आपके DNA में खोट डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के बीच DNA विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब डिप्टी सीएम के समर्थन में बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा मैदान में उतर आया है। शहरभर की दीवारों पर पोस्टर लगाए गए हैं, जिसमें अखिलेश से सवाल पूछा गया है। पोस्टर में लिखा है, जो अपने पिता और चाचा को पार्टी से निकाल चुका है, वो पहले खुद अपना डीएनए टेस्ट करवा ले, सारी सच्चाई सामने आ जाएगी। इससे पहले सपा की ओर से ब्रजेश पाठक के डीएनए को लेकर सोशल मीडिया पर तंज कसा गया था। लखनऊ के चौराहों पर सपा समर्थकों ने पोस्टर भी चिपकाए थे। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर